बाइपोलारिस ओराइजी फफूंद के कारण होने वाला धान में ब्राउन स्पॉट रोग, विशेष रूप से धान की फसलों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है।। यह अंकुरों और परिपक्व पौधों दोनों को प्रभावित करता है, जिससे उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है।ब्राउन स्पॉट, जिसे तिल का पत्ती धब्बा या हेल्मिन्थोस्पोरियोस के नाम से भी जाना जाता है, एक फफूंद रोग है जो दुनिया भर में धान की फसलों को प्रभावित करता है। यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो यह उपज एवं अनाज की गुणवत्ता को अत्यंत प्रभावित करता है। ब्राउन स्पॉट के कारण गंभीर मामलों में उपज में 50% तक की हानि होती है। रंग फीका पड़ जाता है और दाने का बजन कम हो जाता है।
भूरा धब्बा रोग का संक्षिप्त विवरण
यह भूरा धब्बा रोग से संबंधित विस्तृत जानकारी है :
संक्रमणकारक |
रोग |
साधारण नाम |
ब्राउन स्पॉट |
वैज्ञानिक नाम |
हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी |
पौधे के प्रभावित भाग |
पत्तियाँ, तना,बीज |
धान में ब्राउन स्पॉट रोग के अनुकूल कारक क्या-क्या है ?
तापमान: धान में ब्राउन स्पॉट रोग के लिए आदर्श तापमान आमतौर पर 25°C से 30°C (77°F से 86°F) तक होता है। गर्म तापमान फंगल विकास को तेज करता है और प्रति मौसम में रोग चक्रों की संख्या में वृद्धि करता है।
आर्द्रता: यह स्पोर के अंकुरण, संक्रमण और फफूंद के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। 80% सापेक्ष आर्द्रता से ऊपर का आर्द्र वातावरण रोग के विकास के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ बनाता है।
धान में ब्राउन स्पॉट रोग के लक्षण क्या-क्या है ?
पत्तियां: धान की पत्तियों पर छोटे, अंडाकार के भूरे धब्बे (0.5-2.0 mm) दिखाई देते हैं, जो अंततः बढ़ते हैं और पौधे के कई भागों में फ़ैल जाते है, धब्बों का रंग अक्सर पीला होता है और इससे पत्तियाँ सूखने लगती हैं और समय से पहले मर जाती हैं।
लीफ शीथ: लीफ शीथ पर समानय रूप भूरे रंग के धब्बे विकसित होते है, जो पुष्प के आसपास के ब्लेड और ग्लूम्स दोनों को प्रभावित करते हैं। गंभीर संक्रमण होने पर पूरे आवरण को ख़राब कर देता है।
पुष्प एवं शाखाएँ : चावल के पुष्प एवं शाखाओं पर गहरे भूरे/ काले धब्बे या मलिनकिरण दिखाई देते हैं।
बीज: संक्रमित बीज अंकुरित नहीं होते हैं या अंकुर कमजोर होते है। संक्रमित धान के पौधों पर भूरे धब्बे या मलिनकिरण होता है, जिससे संक्रमित फसल का बाजार में मूल्य कम होता है धान की फसल की जानकारी।
धान में ब्राउन स्पॉट रोग के नियंत्रण के उपाय क्या है?
फफूंदनाशी |
तकनीकी नाम |
डोज |
प्रोपिकोनाज़ोल 13.9 % + डिफ़ेनोकोनाज़ोल 13.9 % EC |
200 मिलीलीटर/ एकड़ |
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हेक्साकोनाज़ोल 5% SC |
500 मिलीलीटर/ एकड़ |
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एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डिफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% SC |
300 मिलीलीटर/ एकड़ |
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प्रोपीकोनाज़ोल 25% EC |
200-300 मिलीलीटर/ एकड़ |
धान में ब्राउन स्पॉट रोग से सम्बंधित प्रश्न
Q. धान में ब्राउन स्पॉट रोग के नियंत्रण के उपाय क्या-क्या है?
A. कुछ रासायनिक एवं जैविक विधि द्वारा धान में ब्राउन स्पॉट रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
Q. धान में ब्राउन स्पॉट रोग के नियंत्रण के लिए सर्वोत्तम दवाई कौन-कौन सी है?
A. हेक्सा 5 प्लस, एज़ोज़ोल, बूस्ट आदि द्वारा धान में ब्राउन स्पॉट के नियंत्रण के लिए सर्वोत्तम फफूंदनाशी में से एक है।
Q. धान में ब्राउन स्पॉट रोग या भूरा धब्बा रोग क्या है?
A. धान में ब्राउन स्पॉट रोग (Paddy Brown Spot Disease) या भूरा धब्बा रोग एक कृषि रोग है जो धान (चावल) की फसलों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण धान की पत्तियों पर भूरे या काले धब्बे बन जाते हैं, जो फसल की वृद्धि और उत्पादन को नुकसान पहुंचाते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियाँ सूख जाती हैं और जल्दी गिर जाती हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
Q. धान में फफूंदनाशी के प्रयोग का सर्वोत्तम समय क्या है?
A. धान में फफूंदनाशी उपयोग करने का सबसे अच्छा समय रोपण के 45-50 दिन बाद है क्योंकि यह पौधे की उत्तम वृद्धि का समय है और फफूंदनाशी के उपयोग द्वारा धान की फसल को समस्त रोग से बचाया जा सकता है।