सरसों की खेती भारत में एक प्रमुख तिलहन वर्गीय फसल है। यह फसल विभिन्न राज्यों में उगाई जाती है, जैसे राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल। सरसों के तेल का उपयोग रसोई में बुनियादी सामग्री के रूप में किया जाता है, और इसकी खेती से किसानों को अच्छा लाभ प्राप्त होता है। इस ब्लॉग में हम सरसों की खेती किस प्रकार की जाये उसके बारे में सम्पूर्ण जानकरी लेंगे।
सरसों की फसल का संक्षेप में परिचय
सरसों एक तिलहन वर्गीय फसल है, जो मुख्यतः बुआई के बाद लगभग 3-4 महीने में पककर तैयार हो जाता है। यह फसल ठंडी जलवायु में अच्छी तरह से उगती है और इसकी पैदावार में कई प्रकार के जैविक और रासायनिक कारक शामिल होते हैं।
मिट्टी की आवश्यकताएँ
सरसों की खेती के लिए मिट्टी का उचित होना बहुत आवश्यक है। यह फसल अच्छी जल निकासी वाली हल्की से मध्यम भूमि में अच्छा पैदावार देती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
जलवायु की आवश्यकताएँ
सरसों को ठंडी और शुष्क जलवायु पसंद है। तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होने पर सरसों की फसल अच्छी तरह से विकसित होती है।
सरसों की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
भूमि तैयारी
सरसों की बुआई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। खेत को समतल करने के लिए एक या दो बार हल से जुताई करें, ताकि मिट्टी में ऑक्सीजन की मात्रा बनी रहे और पानी का रिसाव अच्छे से हो।
सरसों की खेती का समय
सरसों की बुआई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है, जो जलवायु के आधार पर थोड़ा बदल सकता है।
बीज दर और दुरी
सरसों के बीज की दर लगभग 1.5 से 2 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। बीजों की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर के बीच रखनी चाहिए।
बीज उपचार
बीजों को बुआई से पहले कात्यायनी समर्था फफूंदीनाशक को 3 ग्राम/कीलों बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए ताकि बीजों से होने वाली बीमारियाँ नियंत्रित की जा सकें।
सिंचाई का कार्यक्रम
सरसों में सिंचाई का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। बुआई के समय एक हल्की सिंचाई दें और उसके बाद मौसम के हिसाब से 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
रासायनिक उर्वरक और खाद
खेत में 20-25 टन गोबर की खाद डालें। रासायनिक उर्वरक के रूप में 60 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फास्फोरस और 30 किलो पोटाश प्रति एकड़ उपयोग करें।
फसल सुरक्षा (कीट और रोग)
माहू (लिपाफ़िस एरिस्मी)
लक्षण: पत्तियों की ऊपरी सतह से रसचूसते है और हमेशा झुण्ड में हमला करते है ।
नियंत्रण : कात्यायनी डीमैट को 300 मिली प्रति एकड़ छिड़काव के माध्यम से प्रयोग करे।
पेंटेड बग (बारग्रादा हिलारिस क्रूसिफेरारम)
लक्षण: पत्तियों के किनारे सफेद धब्बे और अनियमित छेद बन जाते हैं।
उपाय: कात्यायनी क्लोडा का 80- 100 मिली /एकड़ का छिड़काव करें।
सफेद रोली / वाइट रस्ट
लक्षण: पत्तियों, तनो और फलियों पर सफेद धब्बे और पत्तियों का मुरझाना।
उपाय: कात्यायनी टेबुसुल का उपयोग 500 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
पाउडरी मिल्ड्यू / छाछया रोग
लक्षण: पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसी परत बनना।
उपाय:कात्यायनी मेटा - सल्वेट को 400 मिली प्रति एकड़ प्रयोग करें।
कटाई और थ्रेसिंग
सरसों की फसल को तब काटें जब पौधों की पत्तियाँ पीली और सूखी हो जाएं। कटाई के बाद, इसे अच्छे से सुखाकर धान से फसल अलग करें।
सरसों की औसत पैदावार
सरसों की औसत पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, जो कृषि विधियों, जलवायु और खेत की स्थिति पर निर्भर करती है।
निष्कर्ष
सरसों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं यदि सही समय पर खेती की जाए और उचित पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेस का पालन किया जाए। इससे ना सिर्फ फसल की गुणवत्ता बढ़ेगी बल्कि पैदावार में भी वृद्धि होगी।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q. सरसों बोने के कितने दिन बाद पानी देना चाहिए?
A. सरसों बोने के बाद पहली सिंचाई 7-10 दिन के भीतर करनी चाहिए। इसके बाद मौसम और मिट्टी की नमी के हिसाब से सिंचाई करें।
Q. सरसों की बुवाई कब करनी चाहिए?
A, सरसों की बुवाई का सही समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है, जब तापमान 20-25°C के आसपास हो।
Q. सरसों कितने दिन में पक्का तैयार होता है?
A. सरसों की फसल आमतौर पर 140-160 दिनों में तैयार हो जाती है, लेकिन यह मौसम और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
Q. सरसों में पहले पानी पर कौन- कौन सी खाद को प्रयोग ?
A. सरसों में पहली सिंचाई के समय, आप 'नाइट्रोजन', 'फास्फोरस' और सल्फर जैसे उर्वरकों का मिश्रण डाल सकते हैं, जिससे पौधों का सही विकास हो सके।
Q. सरसों की बुवाई कैसे करें?
A. सरसों की बुवाई छिटकवाँ या सीड ड्रिल दोनों विधि से की जा सकती है।
Q. सरसों किस प्रकार की फसल है?
A.सरसों रबी की मुख्य फसल है, जिसे ठंडे मौसम में उगाया जाता है। यह तेल उत्पादन के लिए प्रमुख फसल है।