किसी भी फसल में सफलता प्राप्त करने के लिए शुरुआती दौर से ही उसकी बुनियाद मजबूत होनी चाहिए। जब बात प्याज की खेती की आती है, तो इसकी प्रारंभिक अवस्था में पौधों की जड़ें मजबूत होना, पत्तियों का स्वस्थ और हरा होना, तथा तनाव मुक्त वृद्धि अत्यधिक आवश्यक होती है। मजबूत नींव रखने से फसल की वृद्धि तेज़ होती है और अंततः प्याज की गुणवत्ता एवं आकार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि आपकी प्याज की फसल रोपाई के बाद 25 दिनों की हो चुकी है, तो इस समय उपयुक्त खाद, पोषण और रोग नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। यह ब्लॉग प्याज की फसल के इस महत्वपूर्ण चरण में किए जाने वाले सभी आवश्यक कार्यों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा।

प्याज की फसल में संतुलित पोषण का महत्व
प्याज की फसल आमतौर पर 120 से 140 दिनों में परिपक्व होती है। रोपाई के बाद 25 से 35 दिनों के दौरान प्याज का पौधा पुराने कंद को छोड़कर नए कंद विकसित करना शुरू कर देता है। यदि इस अवस्था में सही खाद और पोषक तत्व न दिए जाएँ, तो फसल पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। असंतुलित पोषण से तना अत्यधिक पतला और लंबा हो सकता है, जिससे 'जलेबी रोग' (ट्विस्टिंग डिजीज) की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, इस समय खेत में संतुलित पोषण देना बेहद महत्वपूर्ण होता है।
इस अवस्था में निम्नलिखित पोषक तत्वों का उपयोग आवश्यक होता है:
- यूरिया: 15 किग्रा प्रति एकड़
- मोनोअमोनियम फॉस्फेट (MoP): 5 किग्रा प्रति एकड़
- सल्फर: 4 से 6 किग्रा प्रति एकड़
- माइक्रोन्यूट्रिएंट: 5 किग्रा प्रति एकड़
रोग एवं कीट नियंत्रण के उपाय
प्याज की फसल के इस चरण में विभिन्न प्रकार के कीटों और बीमारियों का खतरा रहता है, जिनमें जड़ गलन, फफूंदी रोग, तथा रस चूसक कीट (एफिड्स और थ्रिप्स) प्रमुख हैं। खेत में उचित प्रबंधन अपनाकर इन समस्याओं से बचाव किया जा सकता है।
भूमिगत रोगों से बचाव
भूमिगत बीमारियों जैसे 'आर्द्र गलन' (डैम्पिंग ऑफ) और 'जड़ गलन' (रूट रॉट) से बचाव के लिए निम्नलिखित दवाओं का उपयोग करें:
- कात्यायनी समर्था -कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP
- कात्यायनी KTM - थायोफिनेट मिथाइल: 300-400 ग्राम प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाकर प्रयोग करें।
कीट नियंत्रण
प्याज के पत्तों पर रस चूसक कीटों (एफिड्स, थ्रिप्स) का प्रकोप देखा जाता है। इन कीटों के प्रभावी नियंत्रण के लिए:
- कात्यायनी प्रोपसीप - प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% - 350 - 400 ml / Acre
- कात्यायनी चक्रवर्ती - थायोमेथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% - 100 ml / Acre
फफूंदी रोगों से बचाव
- कात्यायनी डॉ. जोल - एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC: 250 मिलीलीटर प्रति एकड़
सिंचाई प्रबंधन और खेत की देखभाल
संतुलित नमी बनाए रखना प्याज की फसल के लिए अत्यधिक आवश्यक है। यदि खेत में अत्यधिक नमी बनी रहती है, तो इससे फफूंदी और जलेबी रोग बढ़ने की संभावना होती है। खेत की मिट्टी को बहुत अधिक कठोर या बहुत अधिक गीला होने से बचाना चाहिए।
सिंचाई करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:
- हल्की सिंचाई करें ताकि मिट्टी की नमी संतुलित बनी रहे।
- ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें ताकि जल का प्रभावी उपयोग हो और अधिक नमी से बचा जा सके।
- खरपतवार को समय पर हटा दें क्योंकि अधिक खरपतवार से रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है।
फसल की भविष्य की देखभाल
यदि प्रारंभिक अवस्था में ही फसल को सही पोषण और रोग नियंत्रण प्रदान किया गया है, तो आगे जाकर फसल को केवल हल्के पोषण और उचित कीटनाशकों की आवश्यकता होगी।
- मौसम को ध्यान में रखते हुए सिंचाई का सही प्रबंधन करें।
- आवश्यकतानुसार अतिरिक्त पोषण और रोग प्रबंधन उपाय अपनाएँ।
- नियमित रूप से खेत की निगरानी करें और किसी भी संभावित समस्या को समय रहते नियंत्रित करें।
निष्कर्ष
प्याज की फसल में प्रारंभिक अवस्था में ही सही पोषण और रोग प्रबंधन अपनाना अत्यंत आवश्यक होता है। संतुलित खाद, उचित सिंचाई और कीटों तथा रोगों से बचाव के उपाय अपनाकर आप अपनी फसल को स्वस्थ और उत्पादक बना सकते हैं। यदि आप इन सभी उपायों का सही ढंग से पालन करेंगे, तो निश्चित रूप से आपकी प्याज की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों उच्च स्तर पर रहेंगे।